Friday 4 November 2011

राह निहारुं बडी देरसे.....

केहते है कि, क्यूं जलाते हो दिल ! मैं हुं ना !
ठंडी आसमानी ओस का दरिया बनकर
तेरे दिल पर छा जाउंगा ॥

मेरी इन लहरो मे डुबते उतरते
तु मधुर सूरावलि सुनाना
झुमकर मैं उसे अपने भाव से भर दुंगा ॥

क्या कहा  ?  क्यूं उदास  हो !  मै हुं ना !
चांद का डोला सजाके तुम्हे बिठाके
मेरे  साथ तुम्हे भी ले जाउंगा ॥

मेरे ह्रदय की रानी बनकर
मेरे ही दिल पे शान से राज करना
मधुर बातो से मैं तेरा दिल हर लुंगा ॥

कब आओगी मेरे दिल के दरवज्जे पे ?
मेरा दिलहरण करने ओ दिलरूबा !
आ जाओ ! मेरे रोम रोम मे बसाउंगा ॥

.................... सरल सुतरिया...... ...

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