Monday 27 February 2012

दीवानगी



मेहफिल सजाके बैठे थे परवाने और शम्मा की पहरेदारी थी
उठते थे जाम सजती थी मेहफिल साकी की वफादारी थी
जानते ही नही थे कोइ कि क्या कसक निकल आयेगी
यहाँ तो शम्मा, परवाना और साकी की साझेदारी थी ॥
......

दिल डुबा रात डुबी चांद की रवानी दिले दुश्मन थी
हमसफर की हरदम गैर-मौजुदगी दिले दुश्मन थी

क्या करते किसे बताते किसकी पनाह मे साँस लेते ?

दिल की वही चाहत पाने की दीवानगी दिले दुश्मन थी !!.
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सीसकती हुइ मेरी साँसे उसके सीने की जलन बन जाये
दहकती हुइ मेरी राते उसके जीने  की वजह बन जाये
क्या क्या ना सहे सितम हमने उसकी आरझु की खातिर !
खनकती हुइ मेरी बाते उसके आने की वजह बन जाये ॥
................................ सरल सुतरिया........


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