ओ मेरे भाइ ! चल तुजे ले चलु बचपन की गलीयों मे
जहा खेले कुदे बिन्दास माँ की गोदी मे ॥
याद कर ! कैसे खेलते थे गलीयों मे यु बेफिकर बनके
ढुंढती फिरती थी माँ हमे दर-बदर शेरीयों मे ॥
बुलाती थी हमे ममता की वो मुरत
गोदी बीठाकर खिलाती थी कोर कोर मुंह मे ॥
लडते झगडते छुपा-छुपी खेलते
गुड्डे गुड्डीयां`की शादी रचाते ॥
कैसे कैसे सुहाने सपने सजाते
छुकछुक गाडी मे खुद को बिठाते ॥
बचपन को अपने दिल से लगाके
चले आये जब इस पडाव पे ॥
ना भुल पाते ना छोड ही पाते
बचपन की यादे वो सुनहरी बाते ॥..................सरल दी.............
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