बंदगी ध्यान में जोड दुं गर इजाजत जो मिले
कांचनमृग की आस छोड दुं गर इबादत जो मिले
अब नहीं चाहिये कोइ जन्नत कोइ स्वर्ग ना हुरें
दिल भक्ति में मोड दुं गर शोहरत जो मिले
समय का पंछी उड रहा है बीत रहा है काळ
धरा पे हरियाली घोल दुं गर बरकत जो मिले
आशिकी की तमाम कोशिशें फिर से नाकामयाब हुइ
मन से मन का पूल बना दुं गर मोहलत जो मिले
सारें अरमाँ सारें कर्म मिट्टी की महेंक भी
वतन की राह में छोड दुं गर शहादत जो मिले
बहुत रोया बहुत तडपा रोटी कपडा घर के लिये
ये सारे बंधन तोड दुं गर दोलत जो मिले
....... सरल सुतरिया ......
वाह ...बहुत खूब .
ReplyDeleteअब नहीं चाहिये कोइ जन्नत कोइ स्वर्ग ना हुरें
दिल भक्ति में मोड दुं गर शोहरत जो मिले ...
लाजवाब ....
करम ही करना है तुझको तो ये करम कर दे ;
मेरे खुदा तू मेरी ख्वाहिशों को ही कम कर दे |
Thanks Anu....
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