Thursday 9 June 2011

विदेशकी धरतीसे विदा ले के

विदेशकी धरतीसे विदा ले के
लो आ गई हु वतन की राहो को

ठंडी ठंडी हवाओं में साँस लेना दुभर था
लो आ गई हु वतन की हुंफमे जीने को.

कई लोगो ने कहा विदेशवा जाके बिगड़ गई हो,
लो आ गई हु वतन की राह में सुधरने  को.

खा रहे थे अब तक ब्रेड बर्गर और PIZZA 
लो आ गई हु बाजरे की रोटी और बेंगन भरता का स्वाद लेने को

घुमे वेल्स लन्दन और ग्रीनिच
लो आ गई हु चांदनी में ताजमहल का मजा लेने को

बिछड़ गई थी अब तक अपनोसे
लो आ गई हु फिर अपनोसे मिलने को
       
 ................सरला सुतरिया.........

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