Sunday 4 March 2012

बचपन की गलीयों मे



मेरे भाइ ! चल तुजे ले चलु बचपन की गलीयों मे
जहा खेले कुदे बिन्दास माँ की  गोदी मे
याद कर ! कैसे खेलते थे गलीयों मे यु बेफिकर बनके
ढुंढती फिरती थी माँ हमे दर-बदर शेरीयों मे
बुलाती थी हमे ममता की वो मुरत
गोदी बीठाकर खिलाती थी कोर कोर मुंह मे
लडते झगडते छुपा-छुपी खेलते
गुड्डे गुड्डीयां`की शादी रचाते
कैसे कैसे सुहाने सपने सजाते
छुकछुक गाडी मे खुद को बिठाते
बचपन को अपने दिल से लगाके
चले आये जब इस पडाव पे 
ना भुल पाते ना छोड ही पाते 
बचपन की यादे वो सुनहरी बाते ..................सरल दी.............