Monday 21 July 2014

वतन की राह में गर शहादत जो मिले


बंदगी ध्यान में जोड दुं गर जाजत जो मिले
कांचनमृग की आस छोड दुं गर इबादत जो मिले

अब नहीं चाहिये कोइ जन्नत कोइ स्वर्ग ना हुरें
दिल भक्ति में मोड दुं गर शोहरत जो मिले

समय का पंछी उड रहा है बीत रहा है काळ
धरा पे हरियाली घोल दुं गर बरकत जो मिले

आशिकी की तमाम कोशिशें फिर से नाकामयाब हुइ
मन से मन का पूल बना दुं गर मोहलत जो मिले

सारें अरमाँ सारें कर्म मिट्टी की महेंक भी
वतन की राह में छोड दुं गर शहादत जो मिले

बहुत रोया बहुत तडपा रोटी कपडा घर के लिये
ये सारे बंधन तोड दुं गर दोलत जो मिले

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सरल सुतरिया ......