मुजे आज भी वो ही दर्द वो ही खलिश है
मेरे तपते जीगरमे आज भी वो ही रंजिश है
कि मिल ना पाये आपसे हम अभी भी
मेरे खुंने जिगरमें आज भी वो ही तपिश है ..
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फूल गुलाबका खिला था मेरी मुहोब्बत को देखकर
मुरझा रहा है अब मेरी दर्दे दास्तां सुनकर
याद है मुजे वो अलबेली सी महेंक तेरी साँसोकी
आके मेहका दे मुजे, आज भी वो ही तरस है ..
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कैसे सहे ये दर्द मुहोब्बतका, सहा नही जाता
बिन कहे अब तो मुजसे रहा भी नही जाता
डरते है कहीं जान ना ले अनकहे लब्झ जमाना
सुनाउं क्यां तुम्हे, मुजे आज भी वो लब्झोकी तलाश है .
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पलकोमें छीपे है मोती जो गिराया भी नही जाता
दर्द है ऐसा कि जमानेसे छिपाया भी नही जाता
खोये हो कहा ? अश्क सम्हालने आ जाओ ओ दिलबर !
ढुंढु कहा तुम्हे, मुजे आज भी वो ही तलाश है .
.....................सरल सुतरिया........